महात्मा गाँधी के जीवन का संघर्ष

 

महात्मा गाँधी के महात्मा बनने की कहानी 

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर एक उच्च परिवार में हुआ | इनका बचपन का नाम मोहनदास कर्मचंद गाँधी था |  इनके पिता कर्मचंद गाँधी पोरबंदर के दीवान / गवर्नर थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थी | इनकी प्रारभिक शिक्षा अपने स्थानीय स्कूल में हुई | बचपन में पढाई में बहुत ज्यादा होशियार ना होकर एक औसत दर्जे के विद्यार्थी थे और इनकी लिखावट भी अच्छी नही थी | लेकिन उनकी अंग्रेजी अच्छी थी | उन्होंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई अहमदाबाद में ही की | इसी दौरान 1882 में इनकी शादी कस्तूरबा से हो गयी | बच्चे हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी घर से ठीक- ठाक थे तो 1888 में बेरिस्टर (वकालत) की पढाई के लिए इंग्लैंड चले गये और वहां यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) से अपनी वकालत की पढाई पूरी की | 1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी होने के बाद वो वापिस भारत आ गये | यहाँ पर रहते हुए उन्होंने राजकोट में ही स्थानीय कोर्ट में काम करने लगे | लेकिन 1893 में एक व्यापारी दादा अब्दुल्ला के साथ किसी केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका चले गये |

मोहनदास कर्मचंद गाँधी को अफ्रीका में काम करते करते 2 महीने ही हुए थे | 7 जून, 1893 को दक्षिण अफ्रीका की एक जगह प्रिटोरिया जा रहे थे वह ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे। कि नस्लीय भेदभाव के अंग्रेजो ने  दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से बहार फैंक दिया |  रात भर ठण्ड से कांपते रहे और सोचते रहे की कब भारत वापिस जा पाउँगा लेकिन इसी नस्लीय भेदभाव के चलते गाँधी जी ने अफ्रीका में रुक कर  भारतीय लोगों और अश्वेत लोगों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना शुरू की | यही मोहन दास कर्मचंद गाँधी के जीवन का Turning Point था | यही से ही गाँधी जी ने अहिंसा की राह पर चलना सीखा और जीवन भर अहिंसा के रास्ते  पर ही चले |  और  साल 1903 से 1905 के बीच अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन नामक पत्र शुरू किया | यह पत्र महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में नस्लीय भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए शुरू किया था | इसी बीच  1904 में डरबन में फ़ीनिक्स सेटलमेंट (एक आश्रम)की स्थापना की | इस स्थान को सत्याग्रह का जन्मस्थान माना जाता है। साल 1906 में, महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका के ट्रांसवाल में स्थानीय भारतीयों के ख़िलाफ़ ट्रांसवाल एशियाई अध्यादेश के विरुद्ध सत्याग्रह किया था. 1909 में भारतीयों का पक्ष रखने इंग्लैण्ड गये लेकिन कुछ , उन्हें 1909 में  प्रिटोरिया में तीन महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी | बहार आने के बाद  महात्मा गांधी ने 1910 में जोहान्सबर्ग में टॉलस्टॉय फ़ार्म  (एक अन्य आश्रम) की स्थापना की  |  1914 में जब यूरोप से विश्व युद्ध शुरू हो रहा था  तो मोहनदास कर्मचंद गाँधी अफ्रीका से भारत रवाना हुए और 21 वर्ष बाद  9 जनवरी 1915 को वापिस भारत पहुंचे | इसी दिन को भारत में प्रवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है |

दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद अपने राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मिले I

गोपाल कृष्ण गोखले ने इनसे कहा की अगर भारत के सभी लोगो की समस्या समझना चाहते हो तो पुरे भारत का भ्रमण करो | यही से मोहनदास कर्मचंद गाँधी के महात्मा बनने का सफ़र शुरू होता है | मोहनदास कर्मचंद गाँधी ने भारत भ्रमण शुरू किया तो उन्हें भारतीय लोगो पर हो रहे अत्याचारों की जानकारी मिली | जल्द ही भेदभाव और अत्यधिक भूमि-कर के खिलाफ विरोध करने के लिए किसानों और शहरी मजदूरों को संगठित करना शुरू कर दिया और अंग्रेजो द्वारा भारतीय लोगों पर किये जा रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी भी शुरू कर दी | 1917  में जब गांधी जी बिहार के एक जिले चंपारन में पहुचे तो उन्होंने पाया की चम्पारन के किसानो से नील की खेती जबरदस्ती करवाई जा रही है और यहाँ के किसानो से 75% तक टैक्स लिया जा रहा था तो उन्होंने इसके खिलाफ सरकार से अपील की कि इतना टैक्स ना ले |  अग्रेज उस समय प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले रहे थे तो उन्हें सेना की आवश्यकता थी | उन्होंने गाँधी जी से शर्त रखी की हम लगान कम कर देंगे लेकिन इसके बदले हमे विश्व युद्ध में लड़ने के लिए भारतीय  सैनिक चाहिए | गाँधी जी ने अंगेजो की बात मान ली और अंग्रेजो ने भी  चंपारण के किसानो पर लगाये जाने वाले तक को टैक्स कम करके 50% कर दिया | इस घटना को चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है | अब गाँधी जी अपनी व् किसानो की बातें  अंग्रेजो से मनवाते रहे व् लोगों से प्रथम विश्व युद्ध में अंगेजो की मदद करने की प्रार्थना भी करते रहे | 

अब मोहनदास कर्मचंद गाँधी भारत में एक जाना माना चेहरा बन गये थे | 1918  में ब्रिटिश नियंत्रण वाले गुजरात में सूखे के कारण फसल खराब हुई थी। प्लेग और हैजा के प्रकोपों ​​ने स्थिति को और खराब कर दिया था। इन कठिनाइयों के बावजूद, ब्रिटिश प्रशासन ने खेड़ा जिले के किसानों पर भूमि राजस्व में 23% की वृद्धि का आदेश जारी किया। ऐसी स्थिति को देखकर किसानो ने गाँधी जो को अपना नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया तो गाँधी जी ने इस आन्दोलन को नतृत्व किया | व् अंग्रेजी सरकार के सामने किसानो की स्थिति रखी | अंग्रेजो ने पूर्ण छानबीन की व् राजस्व वृद्धि के आदेश को वापिस लिया | ये गाँधी जी के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी |  इस घटना को खेडा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है |  इसके थोड़े ही समय बाद 1918 में ही अहमदाबाद गुजरात में मिल मजदूर आन्दोलन हुआ I 1917 में अहमदाबाद में प्लेग महामारी फैलने के कारण मिल मालिकों ने श्रमिकों को मिलों में ही रहने के लिए कहा व्  वेतन पर 75% तक का ‘प्लेग बोनस’ देने की घोषणा की। महामारी के कम होने के बाद, मालिकों ने बोनस वापस लेने की मांग की, तो  श्रमिकों ने 21 दिन तक मिल में ही हड़ताल कर दी | इस हड़ताल में गांधी जी ने पहली बार भूख हड़ताल की और सत्याग्रह के रूप में अहिंसा का इस्तेमाल किया |  इस घटना को अहमदाबाद मिल मजदूर आन्दोलन के नाम से जाना जाता है | 1919 में  इन्ही घटनाओं के बीच एक विश्वव्यापी घटना घटती है | 1918 में प्रथम विश्व युद्ध ख़तम हो गया था और ब्रिटेन इस युद्ध में जीत चुका था | प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की (ओटोमन एम्पायर) द्वारा धुरी राष्ट्रों या जर्मनी का साथ देने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा तुर्की के खलीफा का पद को समाप्त कर देने का फैसला किया | इस फैसले का विरोध विश्व के लगभग सभी मुसलमानों ने विरोध किया | भारत में भी खिलाफत आन्दोलन का प्रभाव देखने को मिला | भारत में खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व “आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस” द्वारा किया गया | गाँधी जी ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया और इस आन्दोलन के प्रमुख प्रवक्ता के रूप में भूमिका निभाई | इस आन्दोलन को हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी जाना जाता है | इसी आन्दोलन के विरोध में  गाँधी जी ने अंग्रेजो द्वारा दिए गये मैडल वापिस कर दिए | यह आन्दोलन असफल रहा क्युकी बाद में खलीफा के पद को बिलकुल समाप्त कर दिया गया | इस आन्दोलन के बाद हिन्दू मुस्लिम एकता को देखते हुए अंग्रेजो ने अंग्रेजो ने 19 मार्च 1919 में रोलेट एक्ट पास कर दिया गया | यह रोलेट एक्ट भारतीय इतिहास का काला क़ानून भी कहा जाता है | इसके तहत बहुत सारे क्रान्तिकारियो को जो अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठा रहे थे उनको बिना कारण बताये जेल के अन्दर बंद किया जा रहा था | इन्ही क्रान्तिकारियो में से सत्यापाल और  डॉ. सेफुदीन किचलू को भी बिना कारण बताये गिरफ्तार कर लिया गया  | अंग्रेजो ने भारतीयों के किसी एक स्थान पर भीड़ इकठ्ठी होने पर पाबन्दी लगायी थी लेकिन 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन बहुत से लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में इकठ्ठे हुए थे की अचानक जनरल डायर ने गोलियां चलवानी शुरू कर दी और बहुत से लोगो को मौत के घाट उतार दिया | इस घटना को जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के नाम से जाना जाता है | गाँधी जी ने रोलेट एक्ट का बहुत ही जोरशोर से विरोध किया इसी को देखकर गाँधी जी ने 1 अगस्त 1920 में अंग्रेजो का सहयोग न करने के लिए लोगो को प्रेरित किया और साल 1920 में असहयोग आन्दोलन शुरू किया | 

गाँधी जी का इस आन्दोलन को शुरू करने का उद्देशीय ब्रिटिश शासन द्वारा चलायी गयी शिक्षा नीति और ब्रिटिश कंपनी द्वारा तैयार सामान का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी अपनाने पर जोर देना था | इसी दौरान गाँधी जी ने खुद चरखे से सूत कात कर लोगो को स्वदेशी कपडा बनाने के लिए प्रेरित किया | इस आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन के नाम से जाना जाता है | यह असहयोग आन्दोलन फरवरी 1922 में घटी एक घटना के बाद बंद कर दिया गया | फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले के चोरी-चोरा नामक स्थान पर एक हिंसक घटना हुई | इस घटना में असहयोग आन्दोलन के प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच भिड़ंत हुई थी जिसमे 22 पुलिसकर्मियों और तीन नागरिकों की मौत हो गई थी | इस हिंसक घटना को देखकर गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को बंद करने का फैसला किया | भारतीय लोगो की एकता को देखकर अंग्रेजो ने भारत में बिकने वाली हर अग्रेजी वस्तु पर TAX लगा दिया यहाँ तक की नमक पर भी टैक्स लेना शुरू कर दिया | नमक पर अंग्रेजी सरकार  के  एकाधिकार को देखकर गाँधी जी ने 12 मार्च, 1930 सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की | यह आन्दोलन  नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है | आंदोलन की शुरुआत गुजरात अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से शुरू होकर समुद्र के किनारे दांडी नामक स्थान तक  हुई थी | इस यात्रा का मुख्य उद्देशीय अंगेजो द्वारा नमक पर किये गये  एकाधिकार को समाप्त करना था | 385 किलोमीटर की लंबी पैदल यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को गांधी जी ने दांडी पहुंचकर नमक  कानून को तोड़ा | इस दौरान गाँधी जी जहाँ भी विश्राम करते थे वह पर जनसभाए भी आयोजित करते थे वे अपने भाषणों  में अंग्रेजी सरकार का विरोध करते थे | इसी दौरान उन्हें  में गिरफ्तार कर लिया जाता है |  नमक कानून का उल्लंघन करने के आरोप में मई 1930 को  गिरफ़्तार किया गया था बाद में बिना मुकदमा चलाए उन्हें जेल में डाल दिया गया और 26 जनवरी 1931 को बिना शर्त रिहा कर दिया गया | 

ब्रिटिश सरकार ने भारत के संविधान पर विचार करने के लिए 1930 से 1932 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए थे. इन सम्मेलनों का मकसद संवैधानिक सुधार लाना था. दूसरा गोलमेज सम्मलेन 7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग लिया था जिसमें कांग्रेस की ओर से नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था | इस सम्मेलन में सरोजनी नायडू और एनी बेसेंट ने भाग लिया था जिसमें महिलाओं का नेतृत्व एनी बेसेंट ने किया था | यह सम्मेलन सांप्रदायिकता के कारण असफल रहा जिससे गांधी जी ने वापस भारत आकर 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से प्रारंभ किया | 25 जून, 1934 को गांधी की हत्या का पहला प्रयास किया गया यह प्रयास हिंदुत्ववादियों के एक गुट ने किया था ऐसा इसलिए क्युकी गाँधी की जाति-पाती के विरोधी थे और राजपूत हिन्दू और ब्राह्मण जाति प्रथा के पक्ष में | साल 1935 में भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ था | हालांकि, गांधी जी सीधे तौर पर इस अधिनियम में शामिल नहीं थे लेकिन फिर भी काफी हद तक गाँधी जी का इसमें महत्वपूर्ण योगदान था | 1936 में, महात्मा गांधीजी ने अपने साबरमती आश्रम चले गये और वही से अंग्रेजी सरकार की योजनाओ पर नज़र बनाये रखी |

वहीँ 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध भी शुरू हुआ तो अंग्रेजो ने ज्यादा से ज्यादा सैनिको को सेना में  युद्ध के लिए शामिल करना शुरू कर दिया | अग्रेजी सरकार  ने युद्ध में होने वाले खर्चे का भार आम जनता पर भी डाला | गाँधी जी को लगा था की ब्रिटेन हार सकता था और जापान और जर्मनी जीत सकते थे | इसी बात का फायदा उठा कर की अंग्रेज युद्ध में  उलझे है तो गाँधी जी ने  8 अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान” (जिसे आज अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है) से  भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुवात की | गाँधी जी ने इस आन्दोलन में लोगो को प्रोत्साहित करने के लिए करो या मरो का नारा दिया था | इसका मकसद ब्रिटिश सरकार को खत्म करना था |आंदोलन में सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। किसान, मजदूर, छात्र, महिलाएं और व्यापारी—सभी ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। और स्वराज के लिए संघर्ष किया। इस आन्दोलन के कारण भारत में आपातकाल जेसी समस्या उत्पन्न हो गयी |ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कड़ी कार्रवाई की। गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद सहित लगभग सभी प्रमुख कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी उपाय अपनाए गए, लेकिन भारतीय जनता के हौसले को तोड़ा नहीं जा सका | इस आन्दोलन ने अंग्रेजों को यह संदेश दिया कि अब भारत पर उनका शासन अधिक दिनों तक नहीं चल सकता। हालांकि आंदोलन तुरंत सफलता नहीं दिला सका, लेकिन इसने स्वतंत्रता की राह को मजबूत कर दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन” शुरू करने के बाद महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र में रहे। उनकी विचारधारा, नेतृत्व, और सत्याग्रह के प्रति प्रतिबद्धता ने भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। हालांकि, 1942 के बाद का समय गांधी जी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए कठिन चुनौतियों से भरा हुआ था।गांधी जी का मानना था कि आजादी के लिए संघर्ष के साथ-साथ भारत को सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाना जरूरी है। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. अहिंसा और सत्याग्रह की मजबूती: गांधी जी ने लगातार इस बात पर जोर दिया कि अहिंसा स्वतंत्रता संग्राम का मूल आधार होना चाहिए। उनकी इस नीति ने भारतीय जनता को एकजुट किया और आंदोलन को नैतिक ऊंचाई दी।

2. साम्प्रदायिक एकता के लिए प्रयास: 1942 के बाद भारत में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगे थे। गांधी जी ने दोनों समुदायों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए। वह मानते थे कि भारत की स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब देश के सभी समुदाय आपस में मिलकर रहेंगे।

3. स्वराज और ग्राम स्वराज का विचार : गांधी जी ने आजादी के बाद भारत को आत्मनिर्भर और ग्राम-केंद्रित बनाने का सपना देखा। उन्होंने “ग्राम स्वराज” की अवधारणा को आगे बढ़ाया, जिसमें हर गांव आत्मनिर्भर हो और लोकतांत्रिक रूप से संगठित हो।

4. भारत-पाक विभाजन का विरोध: 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो गांधी जी ने इसका पूरा विरोध किया। उनका मानना था कि विभाजन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन हिन्दू मुस्लिमों में हो रहे साम्प्रदायिक दंगो को देखकर सभी राजनेताओं के साथ साथ गाँधी जी भी सहमत हो गये | और 14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन कर दिया गया व् 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को अलग राष्ट्र घोषित किया गया व् 15 अगस्त 1947 को भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया |

गांधी जी का दृष्टिकोण और आजादी का महत्व

महात्मा गांधी के नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नैतिक और वैचारिक आधार दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि आजादी सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता न हो, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक न्याय की ओर भी बढ़े। हालांकि विभाजन का दर्द गांधी जी के लिए एक गहरा आघात था, लेकिन उन्होंने इसे भारतीय जनता के लिए एक नई शुरुआत के रूप में देखने की कोशिश की।

गांधी जी का बलिदान

आजादी के तुरंत बाद, गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में शांति और सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने के लिए काम किया। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी गई।

महात्मा गांधी: एक अमर प्रेरणा

महात्मा गांधी का जीवन और संघर्ष भारतीय इतिहास में हमेशा एक प्रेरणा स्रोत रहेगा। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, जहां अहिंसा, सत्य और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी गई। उनका आदर्श हमें यह सिखाता है कि बड़े से बड़े परिवर्तन भी अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर संभव हैं। गांधी जी ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि जब तक हम अपने आंतरिक विश्वास और नैतिकता के साथ संघर्ष करते हैं, तब तक कोई भी शक्ति हमें रोक नहीं सकती। उनका जीवन हमें यह याद दिलाता है कि असली स्वतंत्रता मानसिक और आत्मिक होती है,

 

 

 

 

 

 

 

 

महात्मा गांधी को स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया | 

पेशा : राजनीतिज्ञ, बैरिस्टर, पत्रकार, दार्शनिक, निबंधकार, संस्मरण लेखक, क्रांतिकारी, लेखक, विधिवेत्ता, स्वतंत्रता सेनानी, देश हित में समर्पित के महान व्यक्ति,

महात्मा गाँधी,  एक शांत आंधी

शांति और एकता का प्रतीक

 


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