सभी देशवासियो को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं|
वेसे तो इस विषय पर बहुत सारी किताबे, आर्टिकल, मगेज़ीन आदि लिखे गये है लेकिन मै अपने इस विषय पर अपने विचार इस आर्टिकल के माध्यम से साझा कर रहा हूँ तो चलिए शुरू करते है |
भारत आज 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, यह दिन केवल एक तारीख नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों के संघर्ष, त्याग और बलिदान का प्रतीक है। सदियों तक भारत एक समृद्ध, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से संपन्न राष्ट्र था, जिसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु धीरे-धीरे विदेशी आक्रमणों, आंतरिक कलह, आपसी मतभेद, राजनैतिक अस्थिरता और छल-बल के कारण भारत गुलाम बन गया। हर विद्यार्थी या भारतवासी को ये पता होना चाहिए की भारत कैसे गुलाम हुआ, किन परिस्थितियों से गुज़रा, और कैसे 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ।
भारत को प्राचीन काल से ही “सोने की चिड़िया” कहा जाता था। इसका कारण केवल सोना-चांदी की भरमार नहीं था, बल्कि यहां की समृद्ध संस्कृति, व्यापार, कृषि, कला और विज्ञान भी थे। यह देश प्राकृतिक संपदा, ज्ञान और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम था, जिसकी समृद्धि और वैभव ने पूरे विश्व को आकर्षित किया। भारत में सोना, हीरा, मोती, चांदी, तांबा, लोहा, कोयला और अन्य खनिजों का असीम भंडार था। गोलकुंडा की हीरे की खदानें और कोलार गोल्ड फील्ड्स विश्वभर में प्रसिद्ध थीं। दक्षिण भारत में सोने के भंडार और उत्तर भारत में उपजाऊ भूमि के कारण यहाँ समृद्धि हमेशा बनी रही। गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा जैसी नदियों ने देश की भूमि को उपजाऊ बनाया। यहाँ कपास, रेशम, गेहूं, चावल, गन्ना, मसाले और दालों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था। भारत के कृषि उत्पाद विदेशों में भी निर्यात किए जाते थे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत रहती थी। भारत का व्यापार रोम, मिस्र, अरब, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला हुआ था। मसाले, रेशम, नील, हीरे, मोती और कीमती धातुएँ विदेशों में ऊँचे दामों पर बिकती थीं। समुद्री और थल मार्गों के जरिए भारत विश्व व्यापार में अग्रणी था। भारत ने दुनिया को शून्य, दशमलव, ज्योतिष, आयुर्वेद और वास्तुकला जैसी अद्वितीय देन दी। अजंता-एलोरा, कोणार्क, खजुराहो जैसे मंदिर और स्मारक कला और वैभव के प्रतीक थे। यहाँ की शिक्षा प्रणाली (तक्षशिला, नालंदा) पूरे विश्व में प्रसिद्ध थी। मौर्य, गुप्त, चोल, पल्लव, मुग़ल आदि राजवंशों ने मजबूत और संगठित शासन व्यवस्था दी।
स्थिर अर्थव्यवस्था और सशक्त प्रशासन ने भारत को विश्व का समृद्ध राष्ट्र बनाया। भारत की यह समृद्धि ही विदेशी शक्तियों के लिए लालच का कारण बनी। इतनी संपत्ति और संसाधनों के कारण विदेशी ताकतें (अरब, तुर्क, मुगल, अंग्रेज) बार-बार भारत पर आक्रमण करती रहीं। भारत के मंदिरों को लूटा, शिक्षा के केन्द्रों को मिटाया और यहाँ के शासकों को हराकर धीरे धीरे करके पूरे भारत को गुलाम बना दिया |
लेकिन क्या यही वजह है जिस कारण भारत गुलाम बना | नही और भी बहुत सारी वजह है जैसे की
(क) राजनीतिक विखंडन:– भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में बंटा था। कोई एक केंद्रीय शक्ति नहीं थी जो पूरे देश की रक्षा कर सके।
(ख) आपसी मतभेद और विश्वासघात:– भारतीय शासकों के बीच आपसी संघर्ष चलते रहते थे तो कई बार भारतीय शासकों ने विदेशी ताकतों को अपने विरोधियों को हराने के लिए बुलाया।
(ग) तकनीकी और सैन्य कमजोरी: – विदेशी सेनाओं के पास आधुनिक हथियार और युद्धक रणनीतियाँ थीं, जबकि भारतीय सेनाएँ पुराने तरीकों पर निर्भर थीं।
(घ) आर्थिक लालच और भ्रष्टाचार:– कुछ भारतीय दरबारियों और सरदारों ने धन और पद के लालच में विदेशी आक्रांताओं का साथ दिया।
(ङ). मुगलों से अंग्रेज़ों तक – सत्ता का हस्तांतरण: – 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर हुआ। मराठे, सिख, और अन्य शक्तियों ने अपनी-अपनी जगह पर शासन किया, लेकिन कोई एकजुटता नहीं थी। अंग्रेज़ों ने इस अवसर का फायदा उठाकर धीरे-धीरे पूरे भारत पर नियंत्रण कर लिया। और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज़ी सरकार ने सीधे भारत पर शासन करना शुरू कर दिया।
भारत गुलाम इसलिए हुआ क्योंकि यहाँ अपार संपत्ति थी लेकिन एकता नहीं थी। विदेशी ताकतों ने हमारी आपसी फूट का फायदा उठाया।
गुलामी की शुरुआत कैसे हुई ?
भारत पर पहली विदेशी पकड़ विभिन्न तुर्क और अफगान आक्रमणों के जरिए हुई। 8 वीं सदी से अरब व्यापारी और आक्रमणकारी भारत के पश्चिमी तट पर आने लगे। 11वीं सदी में महमूद ग़ज़नी ने कई बार भारत पर आक्रमण कर मंदिरों और खज़ानों को लूटा 12वीं सदी में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर कब्जा किया। इसके बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, जिसने कई सदियों तक शासन किया। हालांकि मुगलों के समय भारत कला, स्थापत्य और संस्कृति में समृद्ध हुआ, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से देश एकजुट नहीं रहा। अंग्रेज़ भारत को जीतने के लिए अचानक नहीं आए, बल्कि उन्होंने व्यापार के बहाने धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाई। 1600 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापार करने की अनुमति मिली। पहले वे मसाले, कपड़े और अन्य वस्तुएँ खरीदते थे। धीरे-धीरे उन्होंने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप शुरू किया। 1757 की प्लासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर उन्होंने पहला बड़ा राजनीतिक अधिकार हासिल किया। अंग्रेज़ों ने केवल भारत पर शासन ही नहीं किया, बल्कि उसकी आर्थिक रीढ़ तोड़ दी। हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट किया गया। भारतीय किसानों पर अत्यधिक कर लगाए गए। कपास और अन्य कच्चा माल सस्ते में ब्रिटेन भेजा जाता था और वहाँ बने महंगे कपड़े भारत में बेचे जाते थे। धीरे धीरे करके भारत के बहुत सारे लोग विदेशी सामान का प्रयोग करने लगे | एक समय आया जब ब्रिटेन में बने सामान के बिना भारतीय बाज़ार नही चल पा रहे थे | यही से शुरुआत होती है भारत की गुलामी की | लेकिन भारत पूरी तरह गुलाम कब हुआ?
असल में भारत पर प्राचीन काल से कभी अरब, कभी तुर्क, कभी मुगलों ने आक्रमण किये और भारत के बहुत बड़े – बड़े भागों पर शासन किया, लेकिन पूरा भारत एक साथ उनके अधीन नहीं हुआ। जो भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ वो भारत पूरी तरह से गुलाम अंग्रेजों के आने के बाद हुआ।
अखंड भारत का मानचित्र :
भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में 712 ईस्वी में हुआ था | मुहम्मद बिन कासिम एक अरब सेनापति था जो उमय्यद खलीफा के अधीन था। उसने सिंध क्षेत्र पर आक्रमण किया, जो वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है। उस समय राजा दाहिर सिन्ध क्षेत्र के राजा थे । इस आक्रमण को भारत में मुस्लिम शासन की शुरुआत माना जाता है। मुहम्मद बिन कासिम ने उस समय के अखंड भारत के एक बहुत छोटे से क्षेत्र पर कब्ज़ा किया और वहां की जनता पर शासन किया | उसके बाद भारत पर दूसरा मुस्लिम आक्रमण महमूद ग़ज़नवी ने 1000 ईस्वी में किया इसके बाद महमूद गजनवी ने 1027 ईस्वी तक भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए। उसका मुख्य उद्देश्य धन लूटना और इस्लाम का प्रसार करना था | कई शहरों को लूटा, जिनमें सोमनाथ का प्रसिद्ध मंदिर भी शामिल है | महमूद ग़ज़नवी ने भारत में स्थायी राजनीतिक नियंत्रण स्थापित नहीं किया | वह केवल लूट के उद्देशीय से भारत पर आक्रमण करता रहा | इसके बाद मुहम्मद गौरी जो की घुरिद/गौर ( वर्तमान में अफगानिस्तान के घोर क्षेत्र ) साम्राज्य का शासक था, वह 1173 से 1206 तक शासक रहा, इसी बीच 1191 में मुहम्मद गौरी ने वर्तमान भारत के हरियाणा क्षेत्र के शासक पृथ्वीराज चौहान की राज्य पर आक्रमण किया | ये लडाई पानीपत की प्रथम लडाई के नाम से जानी जाती है | इस लड़ाई में मुहम्मद गौरी हार जाता है लेकिन 1192 में मुहम्मद गौरी दुबारा आक्रमण करता है और पृथ्वी राज चौहान को हरा देता है इस युद्ध को तराइन का दूसरा युद्ध कहा जाता है , यहीं से भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का मार्ग शुरू हुआ | मुहम्मद गौरी को भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम शासन स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है | लेकिन मुहम्मद गौरी ने शासन गौर (अफगानीस्तान) से ही किया | 1206 में मुहम्मद गौरी की मृत्यु हो गयी | मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद उसी के एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की, जिससे भारत में एक नए युग की शुरुआत हुई. यह वर्ष भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था गोरी की मृत्यु के बाद, ऐबक ने दिल्ली को एक शक्तिशाली मुस्लिम साम्राज्य के केंद्र के रूप में स्थापित किया | दिल्ली पर अलग अलग वंशों के शासको ने 1526 इसवी तक शासन किया जैसे की गुलाम वंश (1206-1290), खिलजी वंश(1290-1320), तुगलक वंश (1320-1414), सैय्यद वंश (1414-1451) और लोधी वंश (1451-1526) | इनका शासन उत्तर से दक्षिण भारत तक फैला हुआ था।
दिल्ली सल्तनत 1206-1526 तक का मानचित्र
भारत में मुगलों का शासन (1526 – 1707) बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीतकर मुगल साम्राज्य की नींव रखी। पानीपत की पहली लड़ाई में उसने इब्राहीम लोदी को हराया और दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। बाबर के बाद हुमायूँ, और फिर अकबर सत्ता पर आए। 1556 – 1707 तक मुगलों का स्वर्णकाल माना जाता है | अकबर (1556–1605) का शासन मुगलों के स्वर्णकाल की शुरुआत था। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, प्रशासनिक सुधार किए और राजपूतों से अच्छे संबंध बनाए। जहाँगीर (1605–1627) ने कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया। शाहजहाँ (1628–1658) के समय ताजमहल जैसी अद्भुत इमारत बनी। औरंगज़ेब (1658–1707) के समय साम्राज्य सबसे बड़ा था लेकिन उसकी धार्मिक असहिष्णुता और लंबी युद्धनीति के कारण साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। 1705 में भारत में मुग़ल शासक ओरंगजेब भारत के सबसे बहुत बड़े भाग पर शासन कर रहा था जैसे की मानचित्र में दिखाया गया है लेकिन वो भी पुरे भारत पर अपना प्रभुत्व नही जमा पाए |
मुगलों के पतन की शुरुआत (1707 – 1757) 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता बिखरने लगी। दिल्ली का सम्राट नाममात्र का रह गया। प्रांतीय गवर्नर जैसे हैदराबाद, अवध और बंगाल स्वतंत्र हो गए। मराठा, सिख और राजपूत शक्तियाँ उभरने लगीं। नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे आक्रमणों ने मुगलों की कमज़ोरी को उजागर किया। इसी दौरान यूरोपीय व्यापारिक कंपनियाँ (पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज) भारत में मज़बूत हो रही थीं।
1757 प्लासी की लड़ाई और अंग्रेजों का उदय|
वेसे तो 1600 इसवी से ही अंग्रेज भारत में व्यापार कर रहे थे | धीरे धीरे करके उन्होंने भारतीय राजनीती में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया | 1757 की प्लासी की लड़ाई भारत के इतिहास का टर्निंग पॉइंट थी। इस लड़ाई में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को मीर जाफर की विश्वासघात की वजह से हरा दिया। इसके बाद अंग्रेज सिर्फ व्यापारी नहीं, बल्कि शासक बनने लगे। 1764 की बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा और वर्तमान बांग्लादेश की “दीवानी” (राजस्व वसूलने का अधिकार) मिल गया। उस समय बंगाल में वर्तमान का बंगाल, बिहार, और उड़ीसा का क्षेत्र शामिल था जिस पर अंग्रेजो ने अधिकार कर लिए |यह क्षेत्र उस समय भारत का सबसे समृद्ध और उपजाऊ प्रांत था बंगाल की अपार संपत्ति अंग्रेजों के हाथ लगी। इसी सम्पति का प्रयोग करके अंगेजो ने धीरे-धीरे भारत के अन्य हिस्सों में भी पकड़ बना ली।धीरे-धीरे अंग्रेजों ने मराठों, सिखों, मैसूर, राजपूताना और अन्य रियासतों को हराकर अपना नियंत्रण बढ़ाया। 1757 – 1857 मुगल नाममात्र के शासक रहे | बहादुर शाह ज़फर (1857) अंतिम मुगल शासक थे। 1857 के शुरुआत तक भी भारत पूरी तरह अंग्रेजों का गुलाम नहीं बना था, क्योंकि कई रियासतें आधिकारिक रूप से स्वतंत्र थीं। इन्ही छोटी बड़ी रियासतों के राजाओं ने 1857 में अंग्रेजो का सत्ता से हटाने की आखिरी कोशिश की जिसे हम भारतीय इतिहास का पहला स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जानते है यह एक बहुत बड़ा विद्रोह था। इस विद्रोह में सैनिक, किसान, जमींदार और आम जनता शामिल हुई। इस विद्रोह में बहादुर शाह ज़फर को प्रतीकात्मक नेता बनाया गया। मेरठ से विद्रोह शुरू हुआ। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी और ग्वालियर विद्रोह के प्रमुख केंद्र बने। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तांत्या टोपे, बेगम हज़रत महल जैसे वीर सेनानियों ने अंग्रेजों का मुकाबला किया। लेकिन अंग्रेजों की ताकत, आधुनिक हथियार और संगठित सेना ने भारतीयों को हरा दिया। और इसी 1857 में इस विद्रोह को पूरी तरह कुचलने के बाद अंग्रेजों ने मुगल साम्राज्य का अंत कर दिया। बहादुर शाह ज़फर को रंगून (म्यांमार) निर्वासित कर दिया गया। 1858 में भारत पूरी तरह ब्रिटिश क्राउन (ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया) के अधीन हो गया। अंग्रेजों ने सिर्फ युद्ध जीतकर शासन नहीं किया, बल्कि अर्थव्यवस्था और राजनीति पर धीरे-धीरे पकड़ बनाकर भारत पूरी तरह गुलाम बना दिया | और अगले 90 वर्षो तक पुरे तरह से गुलाम रहा ये तो थी कहानी की भारत गुलाम कैसे हुआ ?
1857-1947 ब्रिटिश भारत का मानचित्र

1857 इसवी में सत्ता पूरी तरह से ब्रिटेन के हाथों में आ जाने से भारत, जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, अब अंग्रेजों का उपनिवेश बन चुका था। अब सवाल उठता है की जब भारत इतने समय तक ब्रिटेन का गुलाम रहा तो भारत देश आज़ाद कैसे हुआ ?
1. 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम – शुरुआत की चिंगारी : 1857 का विद्रोह भले ही असफल रहा, लेकिन इसने भारतीयों के दिलों में आज़ादी का सपना जगा दिया। मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और नाना साहेब जैसे वीरों ने अंग्रेज़ों को पहली बार बड़ी चुनौती दी। विद्रोह को दबा दिया गया था, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता के संघर्ष को जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
2. राष्ट्रीय चेतना का विकास : 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। शुरू में मांगें केवल सुधार और अधिकारों तक सीमित थीं, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन गई। बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नौरोजी और गोखले जैसे नेताओं ने जनता को जागरूक किया। शुरुआती दौर में इसके नेता अंग्रेज़ों से सुधार की मांग करते थे।
3. गांधी युग और जन आंदोलन : 1915 में महात्मा गांधी के भारत लौटने के बाद आज़ादी की लड़ाई को नया मोड़ मिला। असहयोग आंदोलन (1920), नमक सत्याग्रह (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942) ने जनता को सीधा संघर्ष में झोंक दिया। लाखों भारतीय इन आंदोलनों में शामिल हुए, जिसमें महिलाएं, छात्र और मध्यम वर्ग के लोग भी शामिल थे | गांधीजी के अहिंसा और सत्याग्रह ने लाखों लोगों को जोड़ दिया। स्वदेशी आंदोलन के तहत विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान हुआ।
4. क्रांतिकारी संघर्ष और बलिदान : भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों ने हथियारबंद संघर्ष किया। नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेज़ों को सैन्य चुनौती दी।
5. भारत छोड़ो आंदोलन (1.942) : भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनाक्रोश को जगाया और स्वतंत्रता की मांग को मजबूत किया। आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया और भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी। गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया। इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों को यह समझा दिया कि अब भारत को दबाकर रखना असंभव है।
6. द्वितीय विश्व युद्ध और अंग्रेजों की कमजोरी : – 1939–45 के द्वितीय विश्व युद्ध ने ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य रूप से बेहद कमजोर कर दिया। अब अंग्रेज़ों के लिए भारत पर शासन करना और मुश्किल हो गया। अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारतीय आंदोलन ने आज़ादी की राह आसान की।
आज़ादी की अंतिम घड़ियाँ: युद्ध के बाद ब्रिटेन आर्थिक रूप से कमजोर हो गया। भारत में लगातार बढ़ते आंदोलनों और विद्रोहों से अंग्रेज़ों ने समझ लिया कि अब शासन जारी रखना असंभव है। 1946 में कैबिनेट मिशन योजना आई और 1947 में विभाजन का निर्णय लिया गया। लंबे संघर्ष, बलिदान और आंदोलनों के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत स्वतंत्र हुआ। हालांकि आज़ादी के साथ ही देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने। 15 अगस्त 1947 की सुबह पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया – At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.”
भारत की स्वतंत्रता केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, यह करोड़ों भारतीयों के बलिदान, संघर्ष और त्याग का परिणाम थी।भारत ने अंग्रेज़ों को यह एहसास करा दिया कि अब उनका शासन असंभव है | गुलामी ने भारत को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से कमजोर किया, लेकिन हमारी आत्मा कभी नहीं टूटी। और अंततः भारत आज़ाद हुआ।
Indian In 15 August 1947
भारत की आज़ादी में अनेक नेताओं का योगदान रहा, जिनमें प्रमुख थे : महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, खान अब्दुल गफ्फार खान, दादाभाई नौरोजी |
इन सभी नेताओं का क्या क्या योगदान था वो समझते है:
1. महात्मा गांधी (1869–1948): महात्मा गांधी को भारत की स्वतंत्रता संग्राम का “राष्ट्रपिता” कहा जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष का नया रास्ता दिखाया – अहिंसा और सत्याग्रह। गांधीजी ने 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को जन-आंदोलन में बदल दिया। 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देते हुए 1920 का असहयोग आंदोलन शुरू किया। 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह किया, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक कदम था। गांधीजी ने जनता को यह विश्वास दिलाया कि बिना हिंसा के भी आज़ादी हासिल की जा सकती है। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उनकी अगुवाई में चला और इसने अंग्रेजों की नींव हिला दी। गांधीजी का दर्शन केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बना। उनके नेतृत्व में गाँव-गाँव का आम इंसान आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा।
2. पंडित जवाहरलाल नेहरू (1889–1964) : नेहरू जी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे। वे पश्चिमी शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक बने। गांधीजी के प्रभाव में आकर उन्होंने कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाई। वे लोकतंत्र, समाजवाद और आधुनिकता के प्रबल पक्षधर थे। नेहरू जी ने युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने का कार्य किया। 1930 और 1942 के आंदोलनों में उनकी अहम भूमिका रही और वे कई बार जेल भी गए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आज़ादी की आवाज़ बुलंद की। 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो नेहरू ने “Tryst with Destiny” भाषण के माध्यम से देश को नई दिशा दी। उनके योगदान से स्वतंत्र भारत की नींव रखी गई और आधुनिक भारत के निर्माण की राह तय हुई।
3. सरदार वल्लभभाई पटेल (लौह पुरुष)(1875–1950): सरदार पटेल को “लौह पुरुष” के नाम से जाना जाता है। वे गांधीजी के निकट सहयोगी थे और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1928 के बारडोली सत्याग्रह में उनके नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया। भारत की आज़ादी के बाद सबसे बड़ा योगदान उनका देशी रियासतों का विलय था। पटेल ने 565 से अधिक रियासतों को भारत में सम्मिलित कर राष्ट्रीय एकता स्थापित की। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने किसानों, मजदूरों और आम जनता को संगठित किया। वे दृढ़ निश्चयी और व्यावहारिक नेता थे, जिनकी नेतृत्व क्षमता ने भारत को एकजुट रखा। अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी ने जनता को आत्मविश्वास दिया। उन्हें सही मायनों में भारत की एकता और अखंडता का शिल्पकार कहा जाता है।
4. भगत सिंह (1907–1931): भगत सिंह भारत के महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने युवाओं में आज़ादी का जुनून जगाया। वे लाला लाजपत राय की मृत्यु से गहराई से प्रभावित हुए और अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया। भगत सिंह ने अपने साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ अंग्रेज़ अफसर सांडर्स की हत्या की और 1929 में असेंबली में बम फेंका ताकि अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट कहा था – “इंकलाब ज़िंदाबाद।” भगत सिंह केवल क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि विचारक भी थे। वे समाजवाद और समानता पर आधारित भारत का सपना देखते थे। 23 मार्च 1931 को 23 वर्ष की आयु में फाँसी पर चढ़ते हुए उन्होंने बलिदान की अमर गाथा लिखी। उनका साहस, बलिदान और विचारधारा आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा है।
5. चंद्रशेखर आज़ाद (1906–1931): चंद्रशेखर आज़ाद भारत के महान क्रांतिकारी और युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। वे बचपन से ही स्वतंत्रता की भावना से ओतप्रोत थे। 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण वे पहली बार गिरफ्तार हुए और अदालत में अपना नाम “आज़ाद” बताया। तभी से वे “चंद्रशेखर आज़ाद” कहलाए। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) को मजबूत बनाया और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को साथ लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने कई साहसी कार्रवाइयाँ कीं, जैसे सांडर्स हत्या और असेंबली बम कांड में सहयोग। आज़ाद का संकल्प था कि वे कभी अंग्रेज़ों के हाथ नहीं आएंगे। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने अंग्रेजों से घिरे होने पर अपनी अंतिम गोली खुद को मार ली और “आज़ाद” ही रहे। उनका साहस और बलिदान आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।
6. नेताजी सुभाष चंद्र बोस (1897–1945): सुभाष चंद्र बोस को “नेताजी” के नाम से जाना जाता है। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे साहसी और प्रखर नेता थे। उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” आज भी हर भारतीय के दिल को छूता है। नेताजी ने कांग्रेस में रहते हुए स्वतंत्रता के लिए कठोर नीतियाँ अपनाने की वकालत की, लेकिन विचारों के मतभेद के कारण उन्होंने आज़ाद हिंद फौज (INA) का गठन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जर्मनी और जापान की मदद से अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालने की कोशिश की। उनकी सेना ने पूर्वोत्तर भारत तक पहुँचकर अंग्रेजों को चुनौती दी। भले ही उनकी योजना सफल न हो सकी, लेकिन उनका साहस, देशभक्ति और नेतृत्व ने भारतीयों में आत्मविश्वास भर दिया। नेताजी भारतीय युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे।
7. लाला लाजपत राय (1865–1928) :लाला लाजपत राय को “पंजाब केसरी” के नाम से जाना जाता है। वे लाल-बाल-पाल त्रयी के सदस्य थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। वे ब्रिटिश शासन की कड़ी आलोचना करते थे और स्वदेशी आंदोलन के प्रबल समर्थक थे। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो पूरे देश में इसका विरोध हुआ। लाजपत राय ने लाहौर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इस दौरान अंग्रेज़ पुलिस ने लाठीचार्ज किया और वे बुरी तरह घायल हुए। कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने युवाओं में आक्रोश भर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भगत सिंह और उनके साथियों ने सांडर्स की हत्या की। लाला लाजपत राय का त्याग और देशभक्ति स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरणा बनी और उन्होंने अपने जीवन से दिखाया कि संघर्ष और बलिदान से ही आज़ादी प्राप्त होती है।
8. बाल गंगाधर तिलक (1856–1920): बाल गंगाधर तिलक को “लोकमान्य” कहा जाता है। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले बड़े नेता थे, जिन्होंने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” का नारा दिया। तिलक ने अपने समाचार पत्र “केसरी” के माध्यम से ब्रिटिश शासन की आलोचना की और जनता को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया। उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी महोत्सव जैसे त्योहारों को जनआंदोलन का माध्यम बनाया। वे लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ गरम दल के नेता थे, जो तत्काल स्वतंत्रता के पक्षधर थे। उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार पर भी बल दिया। तिलक के विचारों ने आने वाले नेताओं जैसे गांधी, नेहरू और पटेल को भी प्रभावित किया। वे जनता में स्वराज और स्वाभिमान की चेतना जगाने वाले पहले बड़े नेता थे।
9. रानी लक्ष्मीबाई (1835–1858) : रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बहादुर वीरांगना थीं। वे झाँसी की रानी थीं और अंग्रेजों की “लैप्स की नीति” (Doctrine of Lapse) के खिलाफ डटकर खड़ी हुईं। जब अंग्रेज़ों ने झाँसी को अपने कब्ज़े में लेना चाहा, तो उन्होंने तलवार उठाकर कहा – *“मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।”* 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने अद्वितीय साहस दिखाया। उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व स्वयं किया और कई युद्धों में अंग्रेज़ों को कड़ी चुनौती दी। रानी घुड़सवारी, युद्धकला और शस्त्र संचालन में निपुण थीं। ग्वालियर के युद्ध में उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। उनका बलिदान भारतीय महिलाओं और युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा बना रहेगा। वे साहस, देशभक्ति और नारी शक्ति की अद्भुत प्रतीक थीं।
10. तात्या टोपे (1814–1859) : तात्या टोपे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और रणनीतिकार थे। उनका असली नाम रामचंद्र पांडुरंग था। वे पेशवा बाजीराव द्वितीय के अनुयायी थे और नाना साहिब के सबसे भरोसेमंद सेनापति बने। तात्या टोपे ने अंग्रेजों के खिलाफ कई महत्वपूर्ण युद्धों का नेतृत्व किया। उनकी गुरिल्ला युद्ध नीति ने अंग्रेज़ों को काफी परेशान किया। उन्होंने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर ग्वालियर में अंग्रेज़ों को चुनौती दी। भले ही अंततः वे पकड़े गए और 1859 में उन्हें फाँसी दी गई, लेकिन उनका साहस, रणनीति और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव को मजबूत कर गया। तात्या टोपे का नाम भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े नायकों में लिया जाता है।
11. खान अब्दुल गफ्फार खान (1890–1988)
खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें “सीमांत गांधी” कहा जाता है, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (आज का पाकिस्तान) के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। वे अहिंसा और शांति के प्रबल समर्थक थे और महात्मा गांधी से गहरा प्रभावित थे। उन्होंने “खुदाई खिदमतगार” नामक संगठन की स्थापना की, जिसे “लाल कुर्ती” आंदोलन भी कहा जाता है। इस संगठन ने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेजों का विरोध किया। गफ्फार खान ने शिक्षा और सामाजिक सुधार पर भी ज़ोर दिया और पश्तून समाज को एकजुट किया। वे जीवनभर हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे। अंग्रेज़ों ने उन्हें कई बार जेल में डाला, लेकिन वे डटे रहे। भारत-पाक विभाजन के बाद भी वे शांति और भाईचारे की राह पर चलते रहे। उनका जीवन अहिंसा, साहस और भाईचारे का अद्भुत उदाहरण है।
12. दादाभाई नौरोजी (1825–1917) : दादाभाई नौरोजी को “भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन” कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1886, 1893 तथा 1906 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों की सच्चाई सामने रखी और “ड्रेन ऑफ वेल्थ” सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार अंग्रेज़ भारत से धन लूटकर इंग्लैंड ले जा रहे थे। उनकी पुस्तक *Poverty and Un-British Rule in India* ने इस सच्चाई को और उजागर किया। वे पहले भारतीय थे जिन्हें ब्रिटिश संसद में चुना गया। दादाभाई नौरोजी ने मध्यमार्गी विचारधारा के माध्यम से भारत की आज़ादी की नींव रखी और भारतीयों को राजनीतिक चेतना दी। वे शिक्षा और सुधारों के प्रबल समर्थक थे। उनका योगदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आर्थिक और वैचारिक आधार देने में महत्वपूर्ण रहा।
निष्कर्ष
आज हमें यह याद रखना चाहिए कि स्वतंत्रता केवल मिली हुई विरासत नहीं है, बल्कि इसे बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।
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