‘नालंदा विश्वविद्यालय’ कहानी शिक्षा के केंद्र की

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन काल में भारत में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था I नालंदा बिहार का  एक छोटा सा जिला है जहाँ पर यह विश्वविद्यालय स्थित था I नालंदा  जिसका इतिहास बहुत ही पुराना है I और हाल ही में 2024 में नालंदा विश्वविद्यालय चर्चा का विषय बना हुआ है I

नालंदा विश्वविद्यालय Nalanda University

आज के इस आर्टिकल में बात करेंगे नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े तथ्यों को ही जानेंगे जैसे कि

  1. नालंदा विश्वविद्यालय चर्चा में क्यों है ?
  2. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या था  व् नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने और कब की ?
  3. नालंदा विश्वविद्यालय में दाखिले की क्या प्रक्रिया थी ?
  4. नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले पढ़ने वाले प्रमुख छात्र कौन कौन थे?
  5. नालंदा विश्वविद्यालय को किसने और क्यों जलाया था ?

 

1. नालंदा विश्वविद्यालय चर्चा में क्यों है ?

2006 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इस प्राचीन कालीन विश्वस्तर के नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने की बात कही थी इसके बाद 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिहार के नालंदा जिले का एक शहर राजगीर (प्राचीन राजगृह) आकर नालंदा विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया।’ सितम्बर 2023 दिल्ली में हुए G-20 के सम्मलेन में भी नालंदा विश्वविद्यालय की पुन: स्थापना के बारे में चर्चा की गयी | जहाँ पर UNO के सचिव एंटेनिओ गुटेरिऔस, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडन, ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधान मंत्री ऋषि सुनांक आदि बड़े नेता शामिल थे I बिहार की 455 एकड़ की भूमि पर नालंदा विश्वविद्यालय बनकर तैयार हो गया है और 19 जून 2024 को श्री नरेंदर मोदी ने राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नये केम्पस का उद्घाटन कर दिया है |

उद्घाटन के समय प्रधान मंत्री के साथ 17 देशो के राजदूत, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, नालंदा विवि के चांसलर प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया भी मौजूद थे।  इस दौरान प्रधानमंत्री के शब्द थे कि नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन करना मेरा सौभाग्य है।”

इस विश्वविद्यालय के चर्चा में रहना का सबसे मुख्य कारण यही है की ये विश्वविद्यालय प्राचीन काल में विश्वस्तर का विश्वविद्यालय होता था जिसका पुन: उद्घाटन किया गया और साथ में एशिया की सबसे बड़ा पुस्तकालय बनाने की भी बात की गयी जिसका कार्य प्रगति पर है  |

2. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या था व् नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने और कब की ?

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत ही गोरवपूर्ण इतिहास है | बात है गुप्त काल जिसे प्राचीन भारत का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है | गुप्त कालीन शासक कुमार गुप्त ने 5वीं शताब्दी में 413/415 ईसवी से 455 ईसवी तक भारत पर शासन किया | उस समय यहाँ पर यह एक बौद्ध विहार था | यहा पर बौद्ध भिक्षु रहते थे | और यहाँ पर केवल बोद्ध साहित्य या बोद्ध धर्म को ही पढ़ाया जाता था | कुछ अभिलेखों में शिक्षा के इस विख्यात केंद्र को ‘महाविहार’ कहा गया है | महाविहार का अर्थ है बोद्ध मठ में सबसे महत्वपूर्ण स्थान |  बोद्ध धर्म से जुड़ा  यह स्थान बौद्ध विहार धीरे धीरे बहुत प्रसिद्ध हो गया था और यहाँ पर दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे I इस प्रसिद्धि को देखकर उस समय के शासक कुमार गुप्त ने 427 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की | स्थापना के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में पढाये जाने वाले विषयों में बोद्ध धर्म या बौध साहित्य के अलावा ज्योतिष शास्त्र, तर्क शास्त्र, योग दर्शन, वैदिक साहित्य, , चिकित्सा विज्ञान, संस्कृत व्याकरण, खगोल विज्ञान, वैदिक गणित, मनोविज्ञान, आदि विषयों का अध्ययन करवाया जाता था | प्राचीन कालीन इस उच्च शिक्षा के केंद्र को भारत का “ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ़ महायान बौद्ध” कहा जाता था | नालंदा विश्वविद्यालय भारत का पहला ऐसा विश्वविद्यालय था जहा पर छात्रों को आवास की भी सुविधा भी दी जाती थी | समय बीतने के साथ-साथ यहाँ की प्रसिद्धि और भी बढ़ने लगी | यहाँ भारत से ही नही अपितु विश्व के अन्य देशो से भी छात्र शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे और पढाई पूरी कर विश्व भर में भारतीय कला का विस्तार करते थे | बताया जाता है की चीन की कुंग-फू कला का प्रारंभिक विकास इस नालंदा विश्वविद्यालय में ही हुआ था I

3. नालंदा विश्व विद्यालय की दाखिला प्रक्रिया केसी थी ?

नालंदा विश्व विद्यालय की दाखिला प्रक्रिया बहुत जटिल होती थी | नालंदा विश्व विद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रवेश दवार पर  पण्डित द्वारा बहुत कठिन प्रश्न पुछे जाते थे | जिस विद्यार्थी को जिस विषय की पढाई करनी होती थी तो उससे उसी विषय के प्रश्न पूछे जाते थे और परीक्षा में पास होने पर ही दाखिला दिया जाता था |

4. नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले पढ़ने वाले प्रमुख छात्र कौन कौन थे?

630 ईस्वी में एक चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत  आया और वह 15 वर्षों तक रहा।  उसने अपने यात्रा वृतांत  सी-यु-की में नालन्दा विश्व विद्यालय का जिक्र  किया | इस विश्व विद्यालय में ह्वेनसांग ने 5 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की थीं | हवेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय को शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बताया है | वह अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है की यहाँ लगभग 10,000 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे | इसमें 1500 शिक्षक पढाते थे |

 5. नालंदा विश्वविद्यालय को किसने और क्यों नष्ट किया ?

12वीं शताब्दी 1175 में मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया और विजित प्रदेशो में अपने गुलामो को देखभाल के लिए छोड़ा | जैसे की कुतुब्दीन ऐबक को दिल्ली की देखभाल के लिए रखा गया | यही कुतुब्दीन ऐबक भारत में मुस्लिम राज्य, दिल्ली सल्तनत व् गुलाम वंश का संस्थापक माना जाता है व् कुतुब्दीन ऐबक जब 1190 के दशक में  भारत में साम्राज्य विस्तार कर रहा था तो उसके एक सेनापति बख्तियार खिलजी ने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया I उस समय वर्तमान के बंगाल, बिहार, उडीसा और बांग्लादेश का क्षेत्र बंगाल के नाम से ही जाने जाते थे तो  नालंदा विश्वविद्यालय भी बंगाल के ही क्षेत्र में आता था |

नालंदा विश्वविद्यालय में करवाई जाने वाली पढाई से बख्तियार खिलजी  को  जलन हुई | क्युकी उस समय विश्व में ऐसा कोई ऐसा  विश्वविद्यालय नही था जहाँ पर बौध साहित्य , ज्योतिष शास्त्र, तर्क शास्त्र, योग दर्शन, वैदिक साहित्य, , चिकित्सा विज्ञान, संस्कृत व्याकरण, खगोल विज्ञान, वैदिक गणित, मनोविज्ञान, आदि विषयों का अध्ययन करवाया जाता हो I वहां पर पढने वाले छात्र और पढ़ाने वाले शिक्षकों से इर्ष्या के कारण बख्तियार खिलजी ने 1199 ईस्वी में इस विश्वविद्यालय को आग लगा दी और | इतिहासकारों का मानना है कि नालंदा विश्व विद्यालय के पुस्तकालय में इतनी पुस्तके थी कि इनको नष्ट होने में 3 से 6 माह का समय लगा | और नालंदा विश्वविद्यालय 3-6 महीनो तक लगातार जलता रहा I एक मुस्लिम शासक को हिन्दु और बोद्ध धर्म की इस उपलब्धि से इर्ष्या थी और हिन्दु और बोद्ध धर्म को इस्लाम के लिए खतरा मानते थे इसी वजह से  बख्तिहार खिलजी ने इस अनमोल ज्ञान के खजाने हो हमेशा के लिए तबाह कर दिया | समय बीतने के साथ साथ शासक बदलते रहे और इस विश्वविद्यालय के विकास में अपना योगदान देते रहे | हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का एक महान राजा था हर्षवर्धन ने नालंदा विश्व विद्यालय को भूमि दान में दी थी | पाल वंश के एक शासक धर्मपाल ने नालंदा विश्व विद्यालय की मरमत  भी करवाई थी लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय को वही स्वरुप नही दे पाए जो उसका पहले था |  नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय उस समय दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था I भारत को उस समय का विश्व गुरु माना जाता था I

आज दुबारा से भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंदर मोदी  इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ | अगर भारत ऐसे ही प्रगति करता रहा तो अगले कुछ वर्षो में भारत एक बात फिर से विश्व गुरु बन जाएगा |

नालंदा विश्वविद्यालय का नया  कैंपस 

 

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